हर रात के बाद इक दिन
और हर दिन के बाद इक रात
हर रात के बाद हम आने वाले
सुनहरे दिन की कल्पना करते हैं,
कल का दिन ऐसे जीना है
सपने रात भर गढ़ते हैं।
पर दिन का गर्म उजाला
सपनों को भाप बना देता है
उड़ाता हैं उन्हें हमारी जमीन से ऊपर
घुमाता हैं उन्हें हमारे चारो ओर
ताकि हम दौड़े उसके पीछे
पकड़ने को, उसे साकार करने को,
पर वो भाप हाथ में थमती नहीं
उड़ जाती है
हमें अपने पीछे भगा भगा
थका देती है
हमारा उस दिन को जीने का
उल्लास मर जाता है
इसी तरह रात के बाद का दिन
गुजर जाता है।
थके हुए हम घर आते हैं
अलसाए से सो जाते हैं
पर रात की शीतल चांदनी में
वो भाप फिर जमती है
अणू टकराते हैं जब उसके
वो झूम-झूम के झरती है
स्वप्न की बारिश की बूंदों में
हम फिर तर हो जाते हैं
फिर उस रात के बाद का दिन
और हम थके हुए सो जाते हैं --
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और हर दिन के बाद इक रात
हर रात के बाद हम आने वाले
सुनहरे दिन की कल्पना करते हैं,
कल का दिन ऐसे जीना है
सपने रात भर गढ़ते हैं।
पर दिन का गर्म उजाला
सपनों को भाप बना देता है
उड़ाता हैं उन्हें हमारी जमीन से ऊपर
घुमाता हैं उन्हें हमारे चारो ओर
ताकि हम दौड़े उसके पीछे
पकड़ने को, उसे साकार करने को,
पर वो भाप हाथ में थमती नहीं
उड़ जाती है
हमें अपने पीछे भगा भगा
थका देती है
हमारा उस दिन को जीने का
उल्लास मर जाता है
इसी तरह रात के बाद का दिन
गुजर जाता है।
थके हुए हम घर आते हैं
अलसाए से सो जाते हैं
पर रात की शीतल चांदनी में
वो भाप फिर जमती है
अणू टकराते हैं जब उसके
वो झूम-झूम के झरती है
स्वप्न की बारिश की बूंदों में
हम फिर तर हो जाते हैं
फिर उस रात के बाद का दिन
और हम थके हुए सो जाते हैं --
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