Sunday, 23 June 2013

"रिश्ता"

"रिश्ता"
नाम नही सम्बन्धों का केवल
ना ही बंधन है
अनुबंध की तरह किसी का साथ देने का।
वह "रिश्ता" नहीं
जो 'रिसता' रहता हो
परस्पर दिलों में कटुता लिए
हँसता रहता हो।
वह पवित्र भावना
जो परिपूर्ण हो-
त्याग, समर्पण और प्यार से 
सुख -दुःख में भागीदारी के अधिकार से
वह डोर -
जिसका कोई छोर नहीं होता
हम बंध जाते हैं एक गाँठ में
तनावों में भी जिसका
कोइ तोड़ नहीं होता।
कुछ ऐसा होता है रिश्ता
जो सीधे दिलों के रास्ते तय करता है
इस रास्ते में मगर
कोई मोड़ नहीं होता।
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Friday, 31 May 2013

"चक्र"

हर रात के बाद इक दिन
और हर  दिन के बाद इक रात
हर रात के बाद हम आने वाले
सुनहरे दिन की कल्पना करते हैं,
कल का दिन ऐसे जीना है
सपने रात भर गढ़ते हैं।
 पर दिन का गर्म  उजाला
 सपनों को भाप बना देता है
उड़ाता हैं उन्हें हमारी  जमीन से ऊपर
घुमाता हैं उन्हें हमारे चारो ओर
ताकि हम दौड़े उसके पीछे
पकड़ने को,  उसे साकार करने को,
पर वो भाप हाथ में थमती नहीं
उड़ जाती है
हमें अपने पीछे  भगा भगा
थका देती है
हमारा उस दिन को जीने का
उल्लास मर जाता है
 इसी तरह रात के बाद का दिन
गुजर जाता है।
थके हुए हम   घर आते हैं
अलसाए से सो जाते हैं
पर रात की शीतल चांदनी में
वो भाप फिर जमती है
अणू टकराते हैं जब उसके
 वो झूम-झूम के झरती है
स्वप्न की बारिश की   बूंदों  में
हम फिर तर हो जाते हैं
फिर उस रात के बाद का दिन
और हम  थके हुए सो जाते हैं --  
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