Tuesday, 29 March 2016

ढाई मिनट की छोटी सी कहानी मेरी लेखनी से;

ढाई मिनट की छोटी सी कहानी मेरी लेखनी से;  

मौसम में हल्की ठंढक सी लग रही थी। ऐसे में हमेँ गरमागरम पॉपकॉर्न खाने का मन हो आया। अब हम ठहरे देसी आदमी। पॉपकॉर्न  का असल टेस्ट तो तब पता चले जब उसे किचन में कूकर में नहीं, जलावन की लकड़ी के ऊपर कढ़ाई में रेत के साथ भून कर खाया जाये। सो हमने किया जुगाड़, लगाई लकड़ी में आग और बैठ गए बरामदे में पॉपकॉर्न फ्राई करने।

हमारे पड़ोस के घर में एक गब्दू जी रहते थे। शहर के एक समाचार पत्र में कुछ जर्नलिस्ट वगैरह थे। आए दिन उस समाचार पत्र का मालिक उनके घर आ धमकता और उनकी चिल्लाहट से बात समझ आती की गब्दू जी की खबरों में कुछ मसाले आदि का अभाव रहता था जिससे बात कुछ बन नहीं रही थी।

गब्दू जी ने हमारे बरामदे में धुआँ देखा तो फौरन इधर को आ गए। हमने उनको पॉपकॉर्न ऑफर किया और साथ ही बातों – बातों में बताया की इस चूल्हे पर क्यूँ भून रहे हैं। गब्दू जी ने कहा की वो बरामदे में धुआँ देख कर आ गए की कुछ बढ़िया पक रहा है। हमने भी कहा की भाई आग और धुआँ तो दूर तक दिखता है, देखिये हो सकता है एक –दो मित्र और आ जावें। पता नहीं हमारी कौन सी बात उन्हे पसंद आ गयी की चट से अपना कैमरा लेकर आए और धुएँ को बैक्ग्राउण्ड में लेकर हमारी फोटो उतार लिया।

अगली सुबह उनके समाचार पत्र में हमारी धुएँ के साथ वाली फोटो छपी थी और साथ में ग्लोबल वार्मिंग में हमारी सहभागिता पर भारी –भरकम शब्दों में कुछ था जो हमारी समझ में नहीं आया। खैर हम फेमस हो गए और इसके लिए हमने गब्दू जी का धन्यवाद किया।

अगले महीने हमारे यहाँ म्यून्सीपालिटी के चुनाव होने थे। उम्मीदवारों में मुद्दों को लेकर मारामारी चल रही थी। पर जनता का मूड देखकर लग रहा था की मामला कुछ जम नहीं रहा है। हमारे अगले मुहल्ले में एक टप्पू जी थे। यूं तो कौंट्रेक्टर परिवार से थे और मेयर कोई भी हो कौंट्रेक्टर बाबूजी का दबदबा रहता था। टप्पू जी काफी बरसों से सीधे राजनीति में सक्रिय होना चाहते थे पर परिवार और चेले-चपाटो के पूरे सपोर्ट के बावजूद कुछ करिश्मा नहीं कर पा रहे थे। वर्तमान मेयर के पक्ष में लहर थी जिसकी वजह से टप्पू जी परेशान थे। अपने चेला मंडली के साथ रद्दी पेपर में चिवड़ा गुड़ खाते हुए मुद्दे तलाश रहे थे की धुएँ के बैक्ग्राउण्ड में मेरी तस्वीर के साथ ग्लोबल वारमिंग पर गब्दू जी का लेख दिख गया । पता नहीं कैसे, पर लगा की उनको जन्नत मिल गयी। अगले ही दिन टप्पू जी ने गब्दू जी सहित 4-5 फ्रीलांस पत्रकारों को बुलाकर पहले उन्हे चाय पकोड़ो से नवाजा और फिर वर्तमान मेयर के राज में ग्लोबल वार्मिंग में मेरे योगदान पर अपना एक interview दिया और बताया की वो ये बर्दाश्त नहीं करेंगे और सभी विपक्षी पार्टियों का एक गठबंधन तैयार करके वर्तमान मेयर के विरुद्ध जनता के बीच में जाएँगे। फिर तो शहर की सड़क- नाले की सफाई, जल जमाव आदि एक तरफ, बस धुएँ के बैक्ग्राउण्ड में हमारी फोटो और वर्तमान मेयर के राज में ग्लोबल वार्मिंग में हमारा योगदान हीं चर्चा में था। मुद्दे में एकदम नयेपन की वजह से जनता को ग्लोबल वार्मिंग वाली बात समझ में आ गयी और चुनाव जीतने के साथ ही गठबंधन के सहयोग से टप्पू जी नए मेयर चुन लिए गए। एक प्लैटफ़ार्म पर जीत से हौसला बढ़ा और राज्य स्तर पर आगे बढ्ने की मूहीम चालू हो गई। 5-6 महीनो बाद राज्य असेंबली के चुनाव थे और गठबंधन और ग्लोबल वार्मिंग के साथ टप्पू जी के हौसले बुलंद। ज़ोर शोर से चुनाव प्रचार शुरू हो गया। पोस्टरों में एक तरफ हमारा साइज़ बढ़ गया और दूसरी तरफ मुट्ठी बांधे हमारी तरफ इशारा करते हुए टप्पू जी का फोटो जुड़ गया। हम तो वही थे धुएँ के बैक्ग्राउण्ड में पॉपकॉर्न भूनते हुए पर हर अगले चौराहे के पोस्टर में टप्पू जी का पोज उनके नारों के साथ बादल जाता। अचानक से लगने लगा की लोग अब टप्पू जी को अपने हितैषी के रूप में जानने लगे हैं जो ग्लोबल वार्मिंग जैसे बड़े विकराल दानव से उनकी रक्षा करने वाला है॥

जैसे जैसे चुनाव पास आने लगे, प्रचार की गतिविधिया तेज होने लगी। एक दिन सुबह –सुबह घर के बाहर शोर सुन कर बाहर निकले तो देखा कुछ समाजसेवी बुद्धिजीवी हाथ में डंडा पट्टी लेकर धरने पर बैठे थे। बाहर निकलते हीं गब्दू जी और उनके साथियों ने मेरी फोटो लेना शुरू कर दिया। फिर कहीं से खबर मिली की टप्पू जी एक बड़ा मोर्चा लेकर मेरे घर के सामने प्रदर्शन और भाषण करेंगे। इन सबके बीच सरकार द्वारा मेरे घर के आगे एक पुलिस चौकी बैठा दी गई। अब आए दिन टीवी-अख़बार वालों का मेरे घर के सामने जमघट लगता। जर्नलिस्ट कमेरे की और मुह करके चार लोगो को बैठा के ज्ञान संगम करते और उनकी कोशिश यही होती की कमेरे में एक पल को भी मैं, मेरा घर, पॉपकॉर्न भूनने की जगह और कुछ नहीं तो बरामदे में पड़ा मेरा खटिया या लटका हुआ गमछा हीं टीवी मेँ दिख जाये।

मामला गरमाता जा रहा था। टप्पू जी हर मंच पर सरकार की निकृष्टता की वजह से ग्लोबल वार्मिंग पर मेरे योगदान को कोस रहे थे, टीवी पर उनही की चर्चा देखने में लोगो के बिजली बिल बढ़ रहे थे और जनता पूरी गरम जोशी के साथ तालियाँ बजा-बजा कर उनका समर्थन कर रही थी।

चुनाव खत्म हो गए थे। वर्तमान सरकार चुनाव हार गयी थी, राज्य असेंबली में टप्पू जी गठबंधन की सरकार बन गयी थी। टीवी पर रात 9 से 11 बजे ग्लोबल वार्मिंग पर चर्चा करने वाले बुद्धिजीवी मानो अब छुट्टीयां बिता रहे थे। ग्लोबल वार्मिंग को ठीक से न रोक पाने के लिए देश की विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर काफी किरकिरी हुई थी, टप्पू जी राष्ट्रीय चुनावो की तैयारी के लिए लिए गली-चौराहो-स्कूल-कॉलेजो में चक्कर लगा मुद्दे तलाश रहे थे और इन सबके बीच मैं घर के किचन में कूकर में पॉपकॉर्न फ्राई करके चुपचाप खा रहा था।    

~प्रणव पीयूष